यह अंतर गहराई से समझने योग्य है कि अपराध और लज्जा दो भिन्न अवस्थाएँ हैं। जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उसके मन में डर होता है कि वह पकड़ा न जाए, उसे दंड न मिले। लेकिन लज्जा एक आंतरिक अनुभूति है, जो आत्मजागरण से उत्पन्न होती है। लज्जा तब आती है जब व्यक्ति अपने भीतर झाँकता है और यह समझता है कि उसके कर्म सही नहीं थे, बिना किसी बाहरी दबाव या सजा के भय के।अपराध का संबंध बाहर की दुनिया से है, जिसमें समाज, कानून और दंड का डर व्यक्ति को पकड़े रहने की कोशिश करता है। लेकिन लज्जा आत्मा के भीतर से आती है, जहाँ व्यक्ति अपने कर्मों के प्रति स्वयं जिम्मेदार महसूस करता है और उस आत्मज्ञान से पीड़ित होता है।अपराध करने वाला व्यक्ति अपनी इच्छा से नहीं बदलता, वह सिर्फ इसलिए रुकता है क्योंकि उसे पकड़े जाने का डर होता है। जबकि जो व्यक्ति लज्जित होता है, वह अपने गलतियों के प्रति जागरूक हो जाता है और स्वाभाविक रूप से सुधार की ओर बढ़ता है।यह अंतर महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपराध एक सतही बदलाव लाता है, जबकि लज्जा गहरी आंतरिक परिवर्तन का द्वार खोलती है।

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