
ग्लोबल stud को दुबई में आशीर्वाद देते हुए योगी जी .
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आज हम जल और जलवायु की बात करेंगे, जो हमारे जीवन की आधारशिला हैं। यह प्रकृति की ओर से परमात्मा का अनमोल उपहार हैं, जो हमारे जीवन को संतुलित, पोषित और शक्ति प्रदान करते हैं। किंतु, आज हमने अपने स्वार्थ और अविवेकपूर्ण कार्यों से इस उपहार को दूषित कर दिया है। नदियों में विष घोल दिया है, जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं, और वनस्पतियों का विनाश करके वर्षा के संतुलन को भंग कर दिया है। इसका प्रभाव अब जलवायु और संपूर्ण धरती पर गहरा आघात कर रहा है।
पौराणिक कथा में समुद्र मंथन का वर्णन मिलता है, जहाँ देवता और असुर मिलकर समुद्र का मंथन करते हैं। उस मंथन से अमृत के साथ-साथ विष भी निकला, जिसने संपूर्ण विश्व में त्राहि-त्राहि मचा दी थी। ठीक उसी प्रकार, हमने आज प्रकृति का अंधाधुंध मंथन कर दिया है, और उसी से प्रदूषण, जल संकट, और जलवायु असंतुलन के विष निकले हैं। यह विष अब हमारे जीवन को गहराई तक प्रभावित कर रहा है। हमें यह समझना होगा कि इस विष का निर्माण हमनें स्वयं किया है, और यह विष हमारे ही जीवन के लिए संकट का कारण बन रहा है।वर्तमान में कई स्थानों पर इसके भयावह परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
कैलिफोर्निया जैसे स्थानों में लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं, अफ्रीका के अनेक हिस्सों में सूखे के कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है, और भारत के कई क्षेत्र भी जल संकट की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं। यदि हमने समय रहते चेतना नहीं ली, तो भविष्य में यह महाविनाश का कारण बन सकता है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि “जल ही जीवन है,” और इसका नाश स्वयं का नाश है।
तो, हमें क्या करना चाहिए?
1. संरक्षण: सबसे पहले, हमें जल संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा। चाहे घर हो, खेत हो, या उद्योग, हर जगह जल का सीमित और विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। हमें “Conserve Water, Secure the Future” का भाव अपनाना होगा और जल संरक्षण के प्रति गहरी आस्था रखनी होगी।
2. पुनःपूर्ति: नदियों और जलस्रोतों की पुनःपूर्ति पर ध्यान देना होगा। वृक्षारोपण से वर्षा का संतुलन बना रहता है। वनस्पतियाँ ही जलवायु संतुलन का आधार हैं। हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे।
3. सजगता और शिक्षा: जनमानस में जागरूकता फैलानी होगी। बच्चों को प्रारंभ से ही जल और जलवायु संरक्षण की महत्ता समझानी होगी। शिक्षा ही वह माध्यम है जो इस विष को अमृत में बदल सकती है। बच्चों में बचपन से ही जल के प्रति आदर और संरक्षण की भावना जागृत करनी चाहिए।
4. शुद्धिकरण: नदियों, तालाबों और अन्य जलस्रोतों का प्रदूषण मुक्त करना अति आवश्यक है। हमें उद्योगों से निकलने वाले कचरे और रसायनों का उचित प्रबंधन करना चाहिए ताकि जल शुद्ध और सुरक्षित रहे।भविष्य में जल संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। यदि हमने इस दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किए, तो जल के लिए संघर्ष उत्पन्न होगा, और यह संकट हमारे बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेल देगा।
जैसे समुद्र मंथन में भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था, वैसे ही हमें भी संयम, तप, और साधना के माध्यम से अपने स्वार्थ को रोकना होगा और पृथ्वी को बचाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा।मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि हम सभी मिलकर साधना और प्रयासों के माध्यम से जल और जलवायु को संरक्षित करेंगे, तो आने वाले युग में एक नई चेतना का संचार होगा। आइए हम यह संकल्प लें कि हम जल को संरक्षित करेंगे, जीवन को बचाएंगे, और इसी में हमारी मानवता का असली अर्थ साकार होगा।
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