दया का दिव्य गुण पूज्य “Yogi Priyavrat Animesh” जी के आशीष वचनपूज्य।

Yogi Priyavrat Animesh जी ने कहा कि देवी माँ ललिता राजराजेश्वरी की अनुकंपा से साधक अपनी आत्मिक शक्ति एवं अविनाशी सत्ता का अनुभव करता है। विशेषतः “अहोई अष्टमी” के पावन दिन श्रद्धापूर्वक की गई उपासना देवी को प्रसन्न कर साधक को अभीष्ट सिद्धियों से विभूषित करती है। संसार की समस्त वस्तुएँ क्षणिक हैं, परंतु जो साधक देवी माँ की भक्ति में लीन हो जाता है, वह अनन्त ज्ञान एवं दिव्य ऊर्जा प्राप्त कर लेता है। माँ भगवती की शक्ति ही इस ब्रह्मांड का आधार है, जो समय-समय पर सृष्टि के संरक्षण हेतु विभिन्न रूपों में प्रकट होती हैं।Yogi Priyavrat Animesh जी ने बताया कि देवी माँ दुर्गा का रौद्र रूप भक्तों का संरक्षण और दुष्टों का नाश करता है, जबकि वात्सल्य पूर्ण रूप भक्तों को अपनत्व का अनुभव कराता है। देवी माँ नारी शक्ति की दिव्य प्रतिमूर्ति हैं और सभी की आस्था का परम आधार हैं। पूज्य Yogi Priyavrat Animesh जी ने इस बात पर जोर दिया कि करुणा, प्रेम, और दया का उदय हमारे अंतःकरण में भगवान की संकल्पना को साकार करने हेतु होता है। दया एक दिव्य गुण है, जो व्यक्ति को परमात्मा के निकट लेकर जाता है। इस दिव्य गुण का पालन कर मनुष्य अपने अंदर परमात्मा का प्रकाश प्रकट कर सकता है, क्योंकि भगवान स्वयं दया स्वरूप हैं।मानव समाज में दया का स्थानदया ही हमारे समाज में स्थाई संतोष एवं शांति की नींव रखती है। यथार्थ में, दया का दान किसी निराश मन में नवप्रेरणा का संचार करता है, गिरे हुए को उठाता है, और भटके हुए को मार्गदर्शन प्रदान करता है। दयालु व्यक्ति की उपस्थिति से अन्य प्राणियों में सुरक्षा और विश्वास का भाव उत्पन्न होता है। Yogi Priyavrat Animesh जी ने कहा कि हमें नियमित रूप से दया का आचरण करना चाहिए। समाज के अनेकों कष्टों का अंत इसी सरल गुण के अनुसरण से हो सकता है।सामूहिक प्रगति का साधन: दयाजैसे हम भगवान से दया की प्रार्थना करते हैं, वैसे ही हमारा कर्तव्य है कि हम दूसरों पर दया करें। जब हम इस महान गुण का पालन करते हैं, तब परमात्मा स्वयं हम पर अपनी अनुकंपा बरसाते हैं। Yogi Priyavrat Animesh जी के वचन हमें स्मरण कराते हैं कि दया का अभ्यास जीवन को आत्मिक संतोष और आंतरिक शांति से भर देता है।—

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