“योगी जी कहते हैं कि यह जान लो कि एक ही परब्रह्म है – वो परम सत्य, वो ब्रह्म जो नाम और रूप से परे है। कोई आकार नहीं, कोई प्रतीक नहीं। वो है और नहीं भी है। वो हर जगह है और कहीं भी नहीं। यह समझना कठिन हो सकता है, पर इसी में सब कुछ छिपा है। एक परम सत्य जो हर जीव में बह रहा है, हर श्वास में, हर पल में।

शिव कह रहे हैं कि ये जीवन एक लीला है – खेल है। माया, हमारी आँखों पर पर्दा डाल देती है। इस माया से परे जाकर ही हम उसे देख सकते हैं। जो कोई सच्चे दिल से ध्यान करता है, वो इस माया को काटकर उस परम सत्य को देख सकता है।

कहते हैं, कलियुग में लोग अपने-अपने देवता के पीछे भागेंगे, जैसे यह कोई प्रतिस्पर्धा हो। एकता के बिना धर्म खंडित हो जाएगा। इसलिए, बस अपने भीतर की उस शांत जगह पर लौट जाओ, जहाँ कोई विभाजन नहीं है, जहाँ कोई मतभेद नहीं है। वहाँ सिर्फ एक ही सत्य है। वहाँ केवल मौन है।

यहाँ सवाल यह है कि हम कब तक अपने भीतर की शांति को नज़रअंदाज़ करेंगे? कब तक उस सत्य से दूर भागेंगे, जो हमारे भीतर है? सत्य को पाने के लिए एकता चाहिए। यह अहंकार की लड़ाई नहीं है, बल्कि आत्मा की यात्रा है।

एकता ही है जो कलियुग के प्रभाव को कम कर सकती है। यह एकता ही हमें स्थिरता और शक्ति देती है। तो आओ, हम ध्यान में उतरें, आत्मा के गहरे महासागर में। वहाँ पर कोई दूसरों को छोटा या बड़ा नहीं समझता, वहाँ केवल एकता है।”

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