आज हमारे सामने एक ऐसा समय आ खड़ा हुआ है, जब मनुष्य का मन कुरीतियों और बुराइयों का दास बन चुका है। मानसिक और सामाजिक बुराइयाँ, जिनकी जड़ें हमारे समाज में गहरी होती जा रही हैं, हमें चुनौती दे रही हैं। मैं आपसे आह्वान करता हूँ कि हम सब मिलकर इस अंधकारमय स्थिति के खिलाफ एक क्रांति का संकल्प लें, एक ऐसी क्रांति जो हमारे विचारों से प्रारंभ हो और हमारे कर्मों में परिलक्षित हो।मनुष्य का मन एक दर्पण है – जैसा समाज होगा, जैसे विचार हमारे चारों ओर होंगे, वैसा ही प्रतिबिंब हमारे मन पर पड़ेगा। बुराइयाँ इसलिए जीवित हैं क्योंकि उनका पोषक वातावरण चारों ओर फैला हुआ है। समाज में अश्लीलता, व्यभिचार, नशा, और नकारात्मकता का प्रसार लगातार बढ़ रहा है। इन बुराइयों के प्रति आकर्षण ने हमारे युवा मनों को अपने शिकंजे में ले लिया है। लेकिन मित्रों, यह वह समय है जब हमें इस वातावरण को बदलना है!आज बुराई के प्रचारक हर ओर सक्रिय हैं – एक बुरा व्यक्ति अपने साथ अनेकों को बुराई की राह पर धकेल देता है। उनकी कथनी और करनी एक होती है, और यही कारण है कि बुराई तेजी से फैलती है। व्यभिचारी, नशेबाज, और दुर्व्यसनी लोग अपनी बुरी आदतें समाज में फैला रहे हैं। उनकी तस्वीरें, गाने, पत्रिकाएँ, और फिल्में हमारे समाज के भोले मन को प्रभावित कर रही हैं। लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि जैसे बुराई फैल सकती है, वैसे ही अच्छाई भी फैल सकती है।सच्चाई का प्रचार करने वाले महानायक आज दुर्लभ हो गए हैं। बुद्ध, गांधी, तिलक, नानक, और कबीर जैसे महापुरुष जिन्होंने अपनी कथनी और करनी को एक रूप में रखा, उनके आदर्शों ने समाज में नई जागृति पैदा की। लेकिन आज समाज में ऐसे आदर्शों का अभाव है। आज धर्म का प्रचार करने वाले कई हैं, लेकिन उनकी कथनी और करनी में फर्क है। इसलिए उनका प्रभाव क्षणिक और सतही है।अब समय आ गया है कि हम इस यथास्थिति को चुनौती दें। हमें बुराई के इस साम्राज्य को समाप्त करने के लिए एक क्रांति की जरूरत है। यह क्रांति कोई बाहरी संघर्ष नहीं, यह हमारे भीतर की क्रांति है। हमें अपनी सोच, अपने कार्य, और अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। हमें आदर्शों की स्थापना करनी होगी, अपने जीवन में वह सच्चाई लानी होगी जो दूसरों के लिए प्रेरणा बने। हमारे कर्म ही समाज को दिशा देंगे।विदेशी मिशनरी अपने धर्म का प्रचार निष्ठा और आस्था के साथ कर रहे हैं, और परिणामस्वरूप लाखों लोग अपनी जड़ों से कटकर नए धर्म में प्रवेश कर रहे हैं। यह हमसे सवाल पूछता है – क्या हम अपनी आस्था, अपने धर्म, और अपनी संस्कृति के प्रति इतने सच्चे हैं? क्या हम अपने आदर्शों का प्रचार उतनी ही निष्ठा से कर रहे हैं जितनी निष्ठा से वे लोग कर रहे हैं?मित्रों, यह क्रांति आपकी और हमारी है। हम सबको मिलकर इस यथार्थ को बदलना है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस समाज को बुराइयों से मुक्त करें। आज मैं आपसे आह्वान करता हूँ कि उठिए, जागिए, और तब तक न रुकिए जब तक हम इस समाज को बुराई से मुक्त नहीं कर देते।सत्य और धर्म की यह क्रांति आपकी प्रतीक्षा कर रही है। आइए, मिलकर इस क्रांति का हिस्सा बनें और एक नया समाज, एक नया भविष्य गढ़ें, जहाँ अच्छाइयाँ फिर से स्थापित हों और बुराइयाँ जड़ से उखाड़ फेंकी जाए।आज जब समाज बुराइयों और कुरीतियों में डूबता जा रहा है, यह हमारे लिए आत्मचिंतन का समय है। मानसिक और सामाजिक बुराइयाँ लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन अब समय है कि हम एक नई क्रांति का संकल्प लें। यह क्रांति हमारे विचारों से शुरू होगी और हमारे कर्मों से समाज को एक नई दिशा देगी। मनुष्य का मन समाज का दर्पण है, और आज यह दर्पण नकारात्मकता और अश्लीलता से धुंधला हो गया है। लेकिन, यह भी सत्य है कि जैसे बुराई फैल सकती है, वैसे ही अच्छाई भी फैल सकती है।आज बुराई के प्रचारक अपने कार्य में जुटे हैं, और हमारे समाज के युवा मन प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन हम इस यथास्थिति को बदल सकते हैं, अगर हम अपने जीवन में सत्य, धर्म, और अच्छाई का संचार करें। यह क्रांति बाहरी संघर्ष नहीं, बल्कि भीतर की क्रांति है। यह हमारी सोच, कर्म, और व्यवहार में परिवर्तन लाने की क्रांति है। बुद्ध, गांधी, नानक, और कबीर जैसे महापुरुषों ने अपने आदर्शों से समाज में जागृति लाई थी, और अब यह हमारी बारी है।हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, और हमारे आदर्श सच्चाई और धर्म के साथ हैं। हमें इस आस्था का प्रचार और प्रसार करना होगा ताकि समाज को बुराइयों से मुक्त किया जा सके। उठिए, जागिए, और तब तक न रुकिए जब तक बुराई समाप्त न हो जाए।— योगी प्रियम्व्रत अनिमेष”सत्य की राह पर, धर्म का प्रचार।”
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यह संदेश उन सभी के लिए है जो समाज में बदलाव लाना चाहते हैं, अच्छाइयों को फैलाना चाहते हैं, और धर्म और सत्य की राह पर चलने का संकल्प करते है।