“प्राचीन सभ्यताओं का संदेश: धैर्य, प्रवाह और प्रकाश।” राइन नदी के तट पर आत्मा, इतिहास और प्रकृति का संगम – योगी प्रियव्रत अनिमेष।

Colonge (German) : जब योगी प्रियव्रत अनिमेष जी इस पवित्र राइन नदी के तट पर खड़े हुए और कोलोन कैथेड्रल की दिव्यता को निहारते हुए सूर्यास्त की महिमा का अनुभव किया, तो यह केवल एक यात्रा नहीं थी। यह मानव चेतना, इतिहास और आध्यात्मिकता के गहन रहस्यों को साकार करने का एक अद्वितीय क्षण था।

राइन नदी: जीवन और प्रवाह का प्रतीक

योगी जी ने कहा, “राइन की यह बहती लहरें केवल जल की धारा नहीं हैं, यह उन अनगिनत प्राणियों और सभ्यताओं की स्मृतियां हैं जिन्होंने यहां जन्म लिया, विकसित हुए और संसार को अपनी छाप दी।”
यह नदी हमें सिखाती है कि जीवन भी इसी प्रवाह की तरह है—हम इसमें डूबते, तैरते और अपना मार्ग ढूंढ़ते हैं। उन्होंने इसे भारतीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जोड़ा:

“नदी केवल भौतिक नहीं है; यह चैतन्य है।”

जैसे गंगा हमारी आत्मा को शुद्ध करती है, वैसे ही राइन भी यहां की आत्माओं और सभ्यताओं की रक्षा करती आई है।

योगी जी ने कहा, “प्रत्येक नदी ब्रह्माण्ड के अदृश्य धागे से बंधी है, जो हमारी चेतना को जोड़ती है। यह हमें अपने आंतरिक प्रवाह को पहचानने और अपने उद्देश्य को समझने का मार्ग दिखाती है।”

कोलोन कैथेड्रल: भक्ति और धैर्य का प्रतीक

कैथेड्रल की भव्यता को देखकर योगी जी ने इसे “धरती पर स्वर्ग की छाया” कहा।
उन्होंने कहा, “यह केवल पत्थरों से बना भवन नहीं है, यह उन हजारों आत्माओं की आस्था, भक्ति और धैर्य का साक्षात् प्रतीक है, जिन्होंने इसे खड़ा किया।”

यहां योगी जी ने ध्यान दिलाया कि भारतीय मंदिर और यह कैथेड्रल दोनों ही ‘ध्रुव स्थलों‘ की तरह हैं, जो हमें हमारी आत्मा की यात्रा का स्मरण कराते हैं।
उन्होंने इसे शिव के ‘ध्यान’ और ‘धैर्य’ से जोड़ा:

“जैसे यह चर्च 600 वर्षों में बना, वैसे ही हमारी आत्मा को पूर्णता तक पहुंचने के लिए कई जीवन लगते हैं। परंतु धैर्य और भक्ति से कुछ भी संभव है।”

सूर्यास्त: प्रकाश और अंधकार का रहस्य

जब सूर्य अस्त हो रहा था, योगी जी ने इसे एक गहरे प्रतीकात्मक दृष्टिकोण से देखा:

“सूर्य का अस्त होना हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर प्रकाश का अंत होता है, परंतु यह अंत केवल नए सृजन का आरंभ है।”

उन्होंने इसे भारतीय दर्शन के ‘संसार के चक्र’ से जोड़ा: जन्म, मृत्यु, और पुनर्जन्म।

उन्होंने कहा, “सूर्यास्त वह क्षण है जब आत्मा स्वयं के भीतर डूबकर अपने मूल स्वरूप को देखती है। यही सच्ची साधना का समय है।”

योगी जी ने उपस्थित लोगों को ध्यान और मौन के अभ्यास का निर्देश दिया, ताकि वे इस क्षण की गहराई को महसूस कर सकें। उन्होंने कहा, “मौन केवल शब्दों की अनुपस्थिति नहीं है, यह ब्रह्मांड के साथ संवाद है।”

राइन और कोलोन: इतिहास और चेतना का संगम

योगी जी ने कोलोन के इतिहास को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझाया:

“यह शहर केवल ईंट-पत्थर का समूह नहीं है। यह उन अनेकों आत्माओं का तीर्थ है, जिन्होंने अपनी साधना, परिश्रम और प्रेम से इसे बनाया है।”

उन्होंने कहा, “रोमन साम्राज्य से लेकर आधुनिक युग तक, कोलोन एक साक्षी रहा है – मानवता के उत्थान और पतन का। परंतु इसकी आत्मा कभी नहीं बदली।”

उन्होंने इसे भारतीय ‘सद्गुरु परंपरा‘ से जोड़ा:

“जिस प्रकार गुरुओं की परंपरा ज्ञान और प्रकाश का संचार करती है, वैसे ही यह शहर और इसकी नदी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती हैं।”

भारतीयता का संदेश: वसुधैव कुटुंबकम

योगी जी ने इस यात्रा को भारतीय संस्कृति के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ से जोड़ा:

“यह दुनिया केवल देशों और सीमाओं का समूह नहीं है। यह एक परिवार है, और हमें इसे इसी रूप में देखना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “जैसे राइन और गंगा अलग होते हुए भी एक ही ब्रह्मांडीय प्रवाह का हिस्सा हैं, वैसे ही हम सब एक ही चेतना के अंश हैं।”

उन्होंने यह भी कहा, “आज हमें अपने भीतर और बाहरी दुनिया में संतुलन बनाना सीखना होगा। कोलोन का यह कैथेड्रल और राइन नदी हमें यह सिखाते हैं कि हम इतिहास और प्रकृति से कैसे सीख सकते हैं।”

आत्मा का आह्वान

योगी जी ने अपनी यात्रा को एक गहन संदेश के साथ समाप्त किया:
“कोलोन का यह क्षण हमें सिखाता है कि जीवन केवल बाहरी उपलब्धियों का नहीं, बल्कि आंतरिक यात्रा का नाम है। जैसे यह चर्च हमें ऊपर उठने की प्रेरणा देता है, वैसे ही हमें अपनी आत्मा को उच्चतम सत्य तक पहुंचाना है। और जैसे यह नदी बहती है, वैसे ही हमें अपने भीतर की रुकावटों को तोड़कर आगे बढ़ना है।”

“अपने भीतर की राइन नदी को प्रवाहित करो, और अपनी आत्मा के कैथेड्रल को निर्मित करो। यही जीवन का सार है।”

यह यात्रा न केवल कोलोन की भव्यता को आत्मसात करने की थी, बल्कि मानवता, प्रकृति और आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने का भी एक अवसर थी।

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